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01:57, 18 जून 2010 के समय का अवतरण
महफ़िलों के तलबगार हैं हम सभी
नींद से अपनी बेज़ार हैं हम सभी
सिर्फ बबलू हसे ये ही काफी नहीं
मान के आँचल के हकदार हैं हम सभी
कोरे वादों से हमें न भारमाईए
इन अदाओं से लाचार हैं हम सभी
वैजों - पंडितों कुछ रहम तो करो
एक अरसे से बीमार हैं हम सभी
अपनी बातों का अंदाज़ ऐसा लगे
जैसे ईसा के अवतार हैं हम सभी
इस बगावत के झंझट में पड़ते नहीं
पालतू हैं वफादार हैं हम सभी
शुक्रिया अलविदा खैरमकदम दुआ
लफ़्ज़ों में ही गिरफ्तार हैं हम सभी