भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपनी जगह / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / वि…)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:01, 18 जून 2010 के समय का अवतरण

शक् शुब्हा अपनी जगह, शिकवा गिला अपनी जगह
दिल लगाने का हसीं ये सिलसिला अपनी जगह

यूँ तो मिलते हैं गले हम ईद पर हर साल ही
पर दिलों का फासला चुभता रहा अपनी जगह

कुछ है अखबारों में शाया और दीवारों पे कुछ
जो कहा अपनी जगह और जो किया अपनी जगह

हो रहे थे खुरदरी सच्चाईयों से रूबरू
पर निगोडी आँख में इक ख़्वाब था अपनी जगह