भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो उनकी लुगाई है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | ||
+ | चे | ||
+ | हरे पर चमक ऐसे कि दिल्ली की लुनाई है | ||
जो गाँव मे बैठी है वो उनकी लुगाई है | जो गाँव मे बैठी है वो उनकी लुगाई है | ||
मक्कार खुदाओं से बेहतर तो मदारी है | मक्कार खुदाओं से बेहतर तो मदारी है | ||
− | दिल खोल के कहता है | + | दिल खोल के कहता है हाथों की सफाई है |
हड़ताल पे टीचर है बच्चे हैं सनीमा में | हड़ताल पे टीचर है बच्चे हैं सनीमा में | ||
− | बबली | + | बबली ने किताबों में इक चिट्ठी छिपाई है |
इंसान को जीने का कोई न हुनर आया | इंसान को जीने का कोई न हुनर आया | ||
− | ये मेरे मदरसों की क्या खूब | + | ये मेरे मदरसों की क्या खूब पढ़ाई है |
बीमार कहाँ जाएँ मजरूह कहाँ जाएँ | बीमार कहाँ जाएँ मजरूह कहाँ जाएँ |
09:22, 19 जून 2010 का अवतरण
चे
हरे पर चमक ऐसे कि दिल्ली की लुनाई है
जो गाँव मे बैठी है वो उनकी लुगाई है
मक्कार खुदाओं से बेहतर तो मदारी है
दिल खोल के कहता है हाथों की सफाई है
हड़ताल पे टीचर है बच्चे हैं सनीमा में
बबली ने किताबों में इक चिट्ठी छिपाई है
इंसान को जीने का कोई न हुनर आया
ये मेरे मदरसों की क्या खूब पढ़ाई है
बीमार कहाँ जाएँ मजरूह कहाँ जाएँ
सरकारी दवाखाने मरहम न दवाई है
ईनाम के लालच दो या धौंस दो जिल्लत की
मैं क्यों न कहूँ वो सब जो तल्ख सचाई है
शहजादा नहीं इसमें शहजादी नहीं इसमें
ये कैसी कहानी है ये कैसी रुबाई है
मिलते हैं खुदा अक्सर रब तेरी खुदाई में
वो शख्स कहाँ जिसके पैरों में बिवाई है