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"ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

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सब की जानी और पहचानी कहता है|
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सब की जानी और पहचानी कहता है |</poem>

09:54, 19 जून 2010 के समय का अवतरण

वो तो सब की राम कहानी कहता है |
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है |

रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर,
चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|

स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,
ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|

शेर ग़ज़ल का जब भी अच्छा होता है,
उलझी बातें सरल बयानी कहता है |

इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,
सब की जानी और पहचानी कहता है |