भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=विजय वाते
 
|रचनाकार=विजय वाते
 
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
 
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
{{KKCatGhazal}}
+
 
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
वो तो सब की राम कहानी कहता है |
 
वो तो सब की राम कहानी कहता है |

09:54, 19 जून 2010 के समय का अवतरण

वो तो सब की राम कहानी कहता है |
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है |

रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर,
चढ़ी नदी से खारा पानी कहता है|

स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,
ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|

शेर ग़ज़ल का जब भी अच्छा होता है,
उलझी बातें सरल बयानी कहता है |

इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,
सब की जानी और पहचानी कहता है |