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"आईना ही नहीं / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

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09:58, 19 जून 2010 के समय का अवतरण

उसको धोखा कभी हुआ ही नहीं|
उसकी दुनिया में आईना ही नहीं|

उसकी आँखो में ये धनक कैसी,
उसका रंगों से वास्ता ही नहीं|

उसने दुनिया को खेल क्यों समझा,
घर से बाहर तो वो गया ही नहीं|

सबकी खुश्फहमियाँ बढाता है,
आईना सच तो बोलता ही नहीं|

आसमानों का दर्द क्या जानें,
उसके तारा कभी चुभा ही नहीं|

तुम उसे शेर मत सुनाओ 'विजय'
शब्द के पार जो गया ही नहीं|