भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किंकर्तव्यविमूढ़ / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं किंकर्तव्यविमूढ़ …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:09, 19 जून 2010 के समय का अवतरण
मैं किंकर्तव्यविमूढ़
हो गया
जो रहस्य था ज्ञात किया इतने यत्नों से
वही पुनः फिर गूढ़
हो गया
मैं किंकर्तव्यविमूढ़
हो गया
धधक रही है रोम रोम में
भीषण ज्वाला
गरल बिना गटके ही, चंद्रचूड
हो गया
मैं किंकर्तव्यविमूढ़
हो गया
वेद, ग्रन्थ ज्ञान कि बातें
तुझसे संबंधो के नाते
अभ्यासों में डूब डूब कर मूढ़
हो गया
मैं किंकर्तव्यविमूढ़
हो गया
अर्थो संदर्भो से सीखे कई व्याकरण
विश्वासों में जकड अकड़ कर रूढ़
हो गया
मैं किंकर्तव्यविमूढ़
हो गया...