भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अन्तिम कविता / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | वे आ रहे हैं<br />श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार<br />मेरे घर की ओर ।<br /><br />उनके काम बता दिए गये-<br />एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का<br />वाणी को छीन लें ।<br />दूसरे का काम है<br />न सुनने देने का ।<br />तीसरे का काम है<br />आंख बन्द करने का-<br />ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।<br />चौथे का काम है<br />मेरे दांत तोड़ने का<br />ताकि मैं चलते समय<br />किसी पर आक्रमण न करूँ ।<br />कुछ देर रुक कर<br />फिर एक गहन | + | वे आ रहे हैं<br />श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार<br />मेरे घर की ओर ।<br /><br />उनके काम बता दिए गये-<br />एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का<br />वाणी को छीन लें ।<br />दूसरे का काम है<br />न सुनने देने का ।<br />तीसरे का काम है<br />आंख बन्द करने का-<br />ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।<br />चौथे का काम है<br />मेरे दांत तोड़ने का<br />ताकि मैं चलते समय<br />किसी पर आक्रमण न करूँ ।<br />कुछ देर रुक कर<br />फिर एक गहन सन्नाटा।<br /><br /><br />(*यह कविता गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व रचित) |
<poem /> | <poem /> |
14:24, 20 जून 2010 का अवतरण
साँचा:Kkglobal
{{अंतिम कविता
।रचनाकार=रमेश कौशिक
}}
वे आ रहे हैं
श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार
मेरे घर की ओर ।
उनके काम बता दिए गये-
एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का
वाणी को छीन लें ।
दूसरे का काम है
न सुनने देने का ।
तीसरे का काम है
आंख बन्द करने का-
ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।
चौथे का काम है
मेरे दांत तोड़ने का
ताकि मैं चलते समय
किसी पर आक्रमण न करूँ ।
कुछ देर रुक कर
फिर एक गहन सन्नाटा।
(*यह कविता गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व रचित)