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"अन्तिम कविता / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

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वे आ रहे हैं<br />श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार<br />मेरे घर की ओर ।<br /><br />उनके काम बता दिए गये-<br />एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का<br />वाणी को छीन लें ।<br />दूसरे का काम है<br />न सुनने देने का ।<br />तीसरे का काम है<br />आंख बन्द करने का-<br />ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।<br />चौथे का काम है<br />मेरे दांत तोड़ने का<br />ताकि मैं चलते समय<br />किसी पर आक्रमण न करूँ ।<br />कुछ देर रुक कर<br />फिर एक गहन सन्नाटा<br />
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वे आ रहे हैं<br />श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार<br />मेरे घर की ओर ।<br /><br />उनके काम बता दिए गये-<br />एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का<br />वाणी को छीन लें ।<br />दूसरे का काम है<br />न सुनने देने का ।<br />तीसरे का काम है<br />आंख बन्द करने का-<br />ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।<br />चौथे का काम है<br />मेरे दांत तोड़ने का<br />ताकि मैं चलते समय<br />किसी पर आक्रमण न करूँ ।<br />कुछ देर रुक कर<br />फिर एक गहन सन्नाटा।<br /><br /><br />(*यह कविता गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व रचित)
 
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14:24, 20 जून 2010 का अवतरण

साँचा:Kkglobal
{{अंतिम कविता
।रचनाकार=रमेश कौशिक }}

वे आ रहे हैं
श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार
मेरे घर की ओर ।

उनके काम बता दिए गये-
एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का
वाणी को छीन लें ।
दूसरे का काम है
न सुनने देने का ।
तीसरे का काम है
आंख बन्द करने का-
ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।
चौथे का काम है
मेरे दांत तोड़ने का
ताकि मैं चलते समय
किसी पर आक्रमण न करूँ ।
कुछ देर रुक कर
फिर एक गहन सन्नाटा।


(*यह कविता गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व रचित)