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|संग्रह=
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKVID|v=wrxM9Q17GnU}}{{KKCatGhazal}}<poem>अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ याद क्या तुझ को दिलाएँ तेरा पैमाँ जानाँ
यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ जानाँ
अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ <br>ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है याद क्या तुझ को दिलायें हम ने जैसे भी बसर की तेरा पैमाँ एहसाँ जानाँ <br><br>
यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया दिल ये कहता है <br>कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ <br><br>
ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम अव्वल-अव्वल की है <br>मुहब्बत के नशे याद तो करहम ने जैसे बे-पिये भी बसर की तेरा एहसाँ चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ <br><br>
दिल आख़िर आख़िर तो ये कहता आलम है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी <br>अब होश नहीं दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ रग-ए-मीना सुलग उठी कि रग-ए-जाँ जानाँ <br><br>
अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर <br>मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ <br><br>
आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं <br>हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था रगग़म-ए-मीना सुलग उठी कि रगदौराँ से जुदा है ग़म-ए-जाँ जानाँ <br><br>जानाँ
मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद <br>अब की कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ दिल पुकारे ही चला जाता सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गिरेबाँ जानाँ जानाँ <br><br>
हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था <br>ग़म-ए-दौराँ हर कोई अपनी ही आवाज़ से जुदा काँप उठता है ग़म-ए-जानाँ हर कोई अपने ही साये से हिरासाँ जानाँ <br><br>
अब की कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ <br>सरजिस को देखो वही ज़न्जीर-ब-ज़ानू पा लगता है कोई सरशहर का शहर हुआ दाख़िल--गिरेबाँ ज़िन्दाँ जानाँ <br><br>
हर कोई अपनी अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही आवाज़ से काँप उठता है <br>ग़ज़ल में आये हर कोई अपने ही साये और से हिरासाँ और हुआ दर्द का उन्वाँ जानाँ <br><br>
जिस हम कि रूठी हुई रुत को देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है <br>भी मना लेते थे शहर का शहर हुआ दाख़िलहम ने देखा ही न था मौसम-ए-ज़िन्दाँ हिज्राँ जानाँ <br><br>
अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये <br>होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जैसे उड़ते हुये औराक़-ए-परेशाँ जानाँ <br><br>
हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे <br>हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ <br><br> होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा <br>जैसे उड़ते हुये औराक़-ए-परेशाँ जानाँ <br><br/poem>