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"अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ
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याद क्या तुझ को दिलाएँ तेरा पैमाँ जानाँ
  
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यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है
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किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ जानाँ
  
अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ <br>
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ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है
याद क्या तुझ को दिलायें तेरा पैमाँ जानाँ <br><br>
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हम ने जैसे भी बसर की तेरा एहसाँ जानाँ  
  
यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है <br>
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दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ जानाँ <br><br>
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दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ  
  
ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है <br>
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अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर
हम ने जैसे भी बसर की तेरा एहसाँ जानाँ <br><br>
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बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ  
  
दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी <br>
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आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ <br><br>
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अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर <br>
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मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद
बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ <br><br>
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दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ  
  
आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं <br>
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हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था
रग-ए-मीना सुलग उठी कि रग-ए-जाँ जानाँ <br><br>
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ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ
  
मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद <br>
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अब की कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ
दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ <br><br>
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सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गिरेबाँ जानाँ  
  
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हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है  
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जिस को देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है  
सर-ब-ज़ानू है कोई सर--गिरेबाँ जानाँ <br><br>
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अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये
हर कोई अपने ही साये से हिरासाँ जानाँ <br><br>
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और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानाँ  
  
जिस को देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है <br>
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हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे
शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िन्दाँ जानाँ <br><br>
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अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये <br>
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और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानाँ <br><br>
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09:25, 21 जून 2010 के समय का अवतरण

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अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ
याद क्या तुझ को दिलाएँ तेरा पैमाँ जानाँ

यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इन्साँ जानाँ

ज़िन्दगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तेरा एहसाँ जानाँ

दिल ये कहता है कि शायद हो फ़सुर्दा तू भी
दिल की क्या बात करें दिल तो है नादाँ जानाँ

अव्वल-अव्वल की मुहब्बत के नशे याद तो कर
बे-पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानाँ

आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं
रग-ए-मीना सुलग उठी कि रग-ए-जाँ जानाँ

मुद्दतों से ये आलम न तवक़्क़ो न उम्मीद
दिल पुकारे ही चला जाता है जानाँ जानाँ

हम भी क्या सादा थे हम ने भी समझ रखा था
ग़म-ए-दौराँ से जुदा है ग़म-ए-जानाँ जानाँ

अब की कुछ ऐसी सजी महफ़िल-ए-याराँ जानाँ
सर-ब-ज़ानू है कोई सर-ब-गिरेबाँ जानाँ

हर कोई अपनी ही आवाज़ से काँप उठता है
हर कोई अपने ही साये से हिरासाँ जानाँ

जिस को देखो वही ज़न्जीर-ब-पा लगता है
शहर का शहर हुआ दाख़िल-ए-ज़िन्दाँ जानाँ

अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये
और से और हुआ दर्द का उन्वाँ जानाँ

हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे
हम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ

होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा
जैसे उड़ते हुये औराक़-ए-परेशाँ जानाँ