भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKVID|v=Wc4fBHSaoZc}} | ||
{{KKCatNazm}} | {{KKCatNazm}} | ||
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रखे, | हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रखे, |
09:28, 21 जून 2010 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रखे,
किसे सैराब करे वो किसे प्यासा रखे ।
कौन निभाता है उम्र भर ताल्लुक़ इतना,
ऐ मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रखे ।
हंस ना इतना फ़क़ीरों के अकेलेपन पर,
जा खु़दा मेरी तरह तुझको भी तन्हा रखे ।
कम नहीं तमा-ए-इबादत भी हिर-ए-ज़र से,
फ़क्र तो वो है के जो दीन ना दुनिया रखे ।
दिल भी पागल है के उस शख़्स से वाबस्ता है,
जो किसी और का होने दे ना अपना रखे ।
मुझको अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा,
कोई तुझसा हो तो फिर नाम भी तुझसा रखे ।
ये अता’अत है क़ता’अत है के चाहत है ’फ़राज़’,
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रखे ।