भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उल्टी दिशा में / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = मदन कश्यप |संग्रह = नीम रोशनी में / मदन कश्यप }} {{KKCat…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:24, 21 जून 2010 के समय का अवतरण


दोस्‍तो दोस्‍तो
तुम्‍हीं बताओ दोस्‍तो
हम क्‍या कहें उस रोशनी को
जो ले जा रही है हमें अंधेरे की ओर
जिन्‍होंने बहुत दिनों तक विश्‍वास नहीं किया
इसके घूमने का
वही आज पृथ्‍वी को
घुमाना चाहते हैं उल्‍टी दिशा में

उन्‍हें अफसोस है
हजारों वर्ष की सभ्‍यता ने
कमजोर कर दिए हमारे दांत
नहीं रहे हम अब कच्‍चा गोश्‍त खाने के काबिल

वे हंसते हैं
करीने से कटे हमारे नाखूनों पर
और पहनाना चाहते हैं हमें बघनखा!