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"आदमी जैसे ही कुछ अजगरों के बीच / प्रकाश बादल" के अवतरणों में अंतर
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चंदन सी ज़िंदगी है विषधरों के बीच। | चंदन सी ज़िंदगी है विषधरों के बीच। | ||
− | ये,वो | + | ये, वो, मैं, तू हैं सब तमाशबीन, |
लहूलुहान सिसकियां हैं खंजरों के बीच। | लहूलुहान सिसकियां हैं खंजरों के बीच। | ||
− | शहर के मज़हब से | + | शहर के मज़हब से नावाकिफ़ अंजान वो, |
बातें प्यार की करे कुछ सरफिरों के बीच। | बातें प्यार की करे कुछ सरफिरों के बीच। | ||
− | भरी सभा में द्रौपदी सा चीख़े मेरा देश, | + | भरी सभा में द्रौपदी-सा चीख़े मेरा देश, |
कब आओगे कृष्ण इन कायरों के बीच। | कब आओगे कृष्ण इन कायरों के बीच। | ||
− | ख़ुद ही अब बताएंगे | + | ख़ुद ही अब बताएंगे कि हम ख़ुदा नहीं, |
आज गुफ़्तगू हुई ये पत्थरों के बीच। | आज गुफ़्तगू हुई ये पत्थरों के बीच। | ||
11:39, 23 जून 2010 के समय का अवतरण
आदमी जैसे हो कुछ अजगरों के बीच।
चंदन सी ज़िंदगी है विषधरों के बीच।
ये, वो, मैं, तू हैं सब तमाशबीन,
लहूलुहान सिसकियां हैं खंजरों के बीच।
शहर के मज़हब से नावाकिफ़ अंजान वो,
बातें प्यार की करे कुछ सरफिरों के बीच।
भरी सभा में द्रौपदी-सा चीख़े मेरा देश,
कब आओगे कृष्ण इन कायरों के बीच।
ख़ुद ही अब बताएंगे कि हम ख़ुदा नहीं,
आज गुफ़्तगू हुई ये पत्थरों के बीच।
आंसू इसलिये आंख से छलकाता नहीं मैं,
कुछ मछलियां भी रहतीं हैं सागरों की बीच।