"लो, झरता रक्त प्रकाश आज नीले बादल के अंचल से / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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+ | लो, झरता रक्त प्रकाश आज नीले बादल के अंचल से, | ||
+ | रँग रँग के उड़ते सूक्ष्म वाष्प मानस के रश्मि ज्वलित जल से! | ||
+ | प्राणों के सिंधु हरित पट से लिपटी हँस सोने की ज्वाला, | ||
+ | स्वप्नों की सुषमा में सहसा निखरा अवचेतन अँधियाला! | ||
+ | आभा रेखाओं के उठते गृह, धाम, अट्ट, नवयुग तोरण, | ||
+ | रुपहले परों की अप्सरियाँ करतीं स्मित भाव सुमन वर्षण! | ||
+ | दिव्यात्मा पहुँची स्वर्गलोक, कर काल अश्व पर आरोहण, | ||
+ | अंतर्मन का चैतन्य जगत करता बापू का अभिनंदन! | ||
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+ | नव संस्कृति की चेतना शिला का न्यास हुआ अब भू-मन में, | ||
+ | नव लोक सत्य का विश्व संचरण हुआ प्रतिष्ठित जीवन में! | ||
+ | गत जाति धर्म के भेद हुए भावी मानवता में चिर लय, | ||
+ | विद्वेष घॄणा का सामूहिक नव हुआ अहिंसा से परिचय! | ||
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+ | तुम धन्य युगों के हिंसक पशु को बना गए मानव विकसित, | ||
+ | तुम शुभ्र पुरुष बन आए, करने स्वर्ण पुरुष का पथ विस्तृत! | ||
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21:55, 23 जून 2010 का अवतरण
लो, झरता रक्त प्रकाश आज नीले बादल के अंचल से,
रँग रँग के उड़ते सूक्ष्म वाष्प मानस के रश्मि ज्वलित जल से!
प्राणों के सिंधु हरित पट से लिपटी हँस सोने की ज्वाला,
स्वप्नों की सुषमा में सहसा निखरा अवचेतन अँधियाला!
आभा रेखाओं के उठते गृह, धाम, अट्ट, नवयुग तोरण,
रुपहले परों की अप्सरियाँ करतीं स्मित भाव सुमन वर्षण!
दिव्यात्मा पहुँची स्वर्गलोक, कर काल अश्व पर आरोहण,
अंतर्मन का चैतन्य जगत करता बापू का अभिनंदन!
नव संस्कृति की चेतना शिला का न्यास हुआ अब भू-मन में,
नव लोक सत्य का विश्व संचरण हुआ प्रतिष्ठित जीवन में!
गत जाति धर्म के भेद हुए भावी मानवता में चिर लय,
विद्वेष घॄणा का सामूहिक नव हुआ अहिंसा से परिचय!
तुम धन्य युगों के हिंसक पशु को बना गए मानव विकसित,
तुम शुभ्र पुरुष बन आए, करने स्वर्ण पुरुष का पथ विस्तृत!