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"सूर्य किरण सतरंगों की श्री करतीं वर्षण / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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सूर्य किरण सतरंगों की श्री करतीं वर्षण
सौ रंगों का सम्मोहन कर गए तुम सृजन,--
रत्नच्छाया सा, रहस्य शोभा से गुंफित,
स्वर्गोन्मुख सौंदर्य प्रेम आनंद से श्वसित!

स्वप्नों का चंद्रातप तुम बुन गए, कलाधर,
विहँस कल्पना नभ से, भाव-जलद-पर रँगकर,
रहस प्रेरणा की तारक ज्वाला से स्पंदित
विश्व चेतना सागर को कर रंग ज्वार स्मित!

प्राण शक्ति के तड़ित मेघ से मंद्र भर स्तनित
जन भू को कर गए अग्नि बीजों से गर्भित,
तुम अखंड रस पावस का जीवन प्लावन भर
जगती को कर अजर हृदय यौवन से उर्वर!

आज स्वप्न पथ से आते तुम मौन धर चरण,
बापू के गुरुदेव, देखने राष्ट्र जागरण!