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"[[लो, झरता रक्त प्रकाश आज नीले बादल के अंचल से / सुमित्रानंदन पंत]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (i
नव लोक सत्य का विश्व संचरण हुआ प्रतिष्ठित जीवन में!
गत जाति धर्म के भेद हुए भावी मानवता में चिर लय,
विद्वेष घॄणा घृणा का सामूहिक नव हुआ अहिंसा से परिचय!
तुम धन्य युगों के हिंसक पशु को बना गए मानव विकसित,
तुम शुभ्र पुरुष बन आए, करने स्वर्ण पुरुष का पथ विस्तृत!
</poem>
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