भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ नहीं / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna }} <poem> '''कुछ नहीं''' एक विश्वास था जो मेरे पास था जिन्दगी के आ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:39, 24 जून 2010 का अवतरण
कुछ नहीं
एक विश्वास था
जो मेरे पास था
जिन्दगी के आख़िरी वक्त में
उसको भी
तुमने तोड़ा।
चलो अच्छा हुआ
जो कहने के लिए
अब कुछ नहीं छोड़ा।