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"शब्द / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

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13:05, 24 जून 2010 के समय का अवतरण

शब्द

शब्द ! मेरे मित्र तुम सबसे बड़े हो
हर घड़ी घेरे खड़े हो
स्वप्न टूटे
मित्र छूटे
एक लेकिन तुम न रूठे
क्योंकि मेरी आत्मा का ब्याह
तुमसे ही हुआ है।

मैं हँसा
तुम गा उठे हो
मैं विकल
तुम रो उठे हो
भाव कैसा ही सही तुमने कहा है
सब दुखों को
सब सुखों को
जो मुझे अब तक मिले हैं
एक तुमने ही सहा है।

मैं रहा हूँ मात्र माध्यम
वस्तुत:; यह ज़िंदगी मुझको मिली
तुमने जिया है।