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"नहीं बनेगा / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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12:54, 17 जुलाई 2006 का अवतरण

लेखक: भवानीप्रसाद मिश्र

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तय करके
नहीं लिख सकते आप
तय करके लिखेंगे
तो आप जो कुछ लिखेंगे
उसमें
लय कुछ नहीं होगा
लीन कुछ नहीं होगा
एक शब्द
दूसरे शब्द को
आवाज देता है कई बार
और अन्यमनस्क सा
दूर पर खड़ा शब्द
घूम पड़ता है आवाज की तरफ
हरफ के अपना मन है
सुन लेते हैं वे
अपने मन की आवाजें
नहीं तो दे देते हैं अनसुनी
खींचे ही कोई शब्द को
तो खिंच जायेगा बेचारा
मगर
अन्तर समझें हल
खींच जाने
और खिंच जाने का !