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"मुझ को शिकस्ते दिल का मज़ा याद आ गया / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर
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− | मुझ को | + | मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया |
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया | तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया | ||
− | कहने को ज़िन्दगी थी बहुत | + | कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर |
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया | कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया | ||
वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं | वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं | ||
− | फिरदौस- | + | फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया |
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई | बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई | ||
− | एक बेवफ़ा का अहद- | + | एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया |
मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम | मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम |
23:09, 24 जून 2010 का अवतरण
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मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया
मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया