"हँसकर तपते रहो / शिशुपाल सिंह 'निर्धन'" के अवतरणों में अंतर
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रात-रात भर जब आशा का दीप मचलता है, | रात-रात भर जब आशा का दीप मचलता है, | ||
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::जीवन-पथ में, गहरे पानी की। | ::जीवन-पथ में, गहरे पानी की। | ||
हँसकर तपते रहो छाँव का अर्थ समझने को, | हँसकर तपते रहो छाँव का अर्थ समझने को, | ||
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09:48, 27 जून 2010 के समय का अवतरण
रात-रात भर जब आशा का दीप मचलता है,
तम से क्या घबराना सूरज रोज़ निकलता है ।
कोई बादल कब तक
रवि-रथ को भरमाएगा?
ज्योति-कलश तो निश्चित ही
आँगन में आएगा।
द्वार बंद मत करो भोर रसवन्ती आएगी,
कभी न सतवंती किरणों का चलन बदलता है ।
भले हमें सम्मानजनक
सम्बोधन नहीं मिले,
हम ऐसे हैं सुमन
कहीं गमलों में नहीं खिले।
अपनी वाणी है उद्बोधन गीतों का उद्गम,
एक गीत से पीड़ा ओं का पर्वत गलता है ।
ठीक नहीं है यहाँ
वेदना को देना वाणी,
किसी अधर पर नहीं-
कामना, कोई कल्याणी ।
चढ़ता है पूजा का जल भी ऐसे चरणों पर
जो तुलसी बनकर अपने आँगन में पलता है ।
मत दो तुम आवाज़
भीड़ के कान नहीं होते,
क्योंकि भीड़ में-
सबके सब इन्सान नहीं होते ।
मोती पाने के लालच में नीचे मत उतरो,
प्रणपालक तृण तूफ़ानों के सर पर चलता है ।
रात कटेगी कहो कहानी
राजा-रानी की,
करो न चिन्ता
जीवन-पथ में, गहरे पानी की।
हँसकर तपते रहो छाँव का अर्थ समझने को,
अश्रु बहाने से न कभी पाषाण पिघलता है ।