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− | शब्द का व्यक्तित्व क्यों दुहरा हुआ है? | + | शब्द का व्यक्तित्व क्यों दुहरा हुआ है ? |
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+ | :अन्न का रिश्ता नहीं अब आचरण से, | ||
+ | :ज़िंदगी से कहीं ज़्यादा, साबका पड़ता मरण से । | ||
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− | अंधा हुआ, बहरा हुआ | + | अंधा हुआ, बहरा हुआ है । |
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09:10, 29 जून 2010 के समय का अवतरण
खून का आँसू -
हमारी आँख में, ठहरा हुआ है ।
बाहरी हो तो करूँ तीमारदारी,
रिस रहे नासूर से तो अक्ल हारी ।
मरहमपट्टी से सरासर-
सच ये गहरा हुआ है ।
हो गई भाषा पहेली, उलटबाँसी,
आज खांटे व्यंग्य की सूरत रूआँसी ।
पूछता है काल हमसे,
शब्द का व्यक्तित्व क्यों दुहरा हुआ है ?
अन्न का रिश्ता नहीं अब आचरण से,
ज़िंदगी से कहीं ज़्यादा, साबका पड़ता मरण से ।
विधाता जनगणों का -
अंधा हुआ, बहरा हुआ है ।