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"काँटे आए कभी गुलाब आए.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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11:14, 29 जून 2010 का अवतरण

काँटे आए कभी गुलाब आए
जो भी आए वो बेहिसाब आए

रंग उड़ जाए उनके चेहरे का
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए

काम आए न कोई चतुराई
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए

दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो
सामने मेरे, बेनक़ाब आए

घर की छत में दरार है “श्रद्धा”
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए

शब्दार्थ
<references/>