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"मन की कविता / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर
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एकांत का कोई
सुरक्षित कोना नहीं चाहिए
अपने लिए.
मैं
तुम्हारे लिए
तुम्हारे साथ रहकर
तुम पर लिखना चाहता हूँ
अपने मन की कविता.
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