भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिर आना / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> विदा होते दु…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:56, 29 जून 2010 के समय का अवतरण
विदा होते दुःख तुम फिर आना
कि तुम्हारे आने से
घर में एका रहा चार दिन
कि तुम्हारे आने से
बनी रही चहल-पहल थोड़ी
कि तुम्हारे आने से
अपनत्व का अहसास हुआ
कि तुम्हारे आने से
अंततः तो मिला सुख ही
विदा होते दुःख तुम फिर आना
कि बाकी है अभी यहाँ
दुःख बाँटने की परम्परा।
00