भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वह-1 / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> वह जब बोलता ह…)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:56, 29 जून 2010 के समय का अवतरण


वह जब बोलता है
तो लगता है
बारिश होने वाली है।

वह जब बोलता है
तो लगता है
दिन फिरने वाले हैं।

वह जब बोलता है
तो लगता है
हमारे बीच से ही उठा है वह

लेकिन
वह सिर्फ बोलता है
न बारिश होती है
न दिन फिरते हैं
न बन पाता है अपना।
वह बोलता है
सिर्फ बोलता है।
00