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कभी-कभी पावन बसंत-सा
हौले-हौले आता है
कभी-कभी एक तेज़ हवा-सा
भाग-भाग कर जाता है
कभी-कभी ये किसी झील-सा
ठहर-ठहर जाता है
कहां से आता है
किधर को जाता है
ये कौन समझ पाता है
आता है, जाता है
वक़्त को कोई
कब पकड़ पाता है
<पोएत्र्य>