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"दर्द / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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दर्द के सागर में
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<poem>दर्द के सागर में
 
मैं डूबता तिरता हूं
 
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कोई नहीं थामता
 
कोई नहीं थामता
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मेरा शब्द-शब्द ।
 
मेरा शब्द-शब्द ।
  
अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा
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'''अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा'''</poem>

08:22, 30 जून 2010 का अवतरण

दर्द के सागर में
मैं डूबता तिरता हूं
कोई नहीं थामता
मेरा हाथ ।

मैं नहीं चाहता
मेरी पीड़ा का
बखान
पहुंचे आप तक
या उन तक ।

लेकिन कोई चारा भी नहीं है
मेरे दर्द का
साक्षी है
मेरा शब्द-शब्द ।

अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा