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"साक्षी है शब्द / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>दर्द के सागर में मैं डूबता तिरता हूं कोई नहीं थमता मेरा हाथ । म…)
 
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08:44, 30 जून 2010 के समय का अवतरण

दर्द के सागर में
मैं डूबता तिरता हूं
कोई नहीं थमता
मेरा हाथ ।

मैं नहीं चाहता
मेरी पीड़ा का
बखान
पहुंचे आप तक
या उन तक ।

लेकिन कोई चारा भी नहीं है
मेरे दर्द का
साक्षी है
मेरा शब्द-शब्द ।

अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा