भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साक्षी है शब्द / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>दर्द के सागर में मैं डूबता तिरता हूं कोई नहीं थमता मेरा हाथ । म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:44, 30 जून 2010 के समय का अवतरण
दर्द के सागर में
मैं डूबता तिरता हूं
कोई नहीं थमता
मेरा हाथ ।
मैं नहीं चाहता
मेरी पीड़ा का
बखान
पहुंचे आप तक
या उन तक ।
लेकिन कोई चारा भी नहीं है
मेरे दर्द का
साक्षी है
मेरा शब्द-शब्द ।
अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा