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"लील न लें / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
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14:17, 30 जून 2010 के समय का अवतरण
किसी धमाके के साथ
हडकंप मचाते हुए
खलनायक की तरह मंच पर
उपस्थित नहीं होता पतझड़
दबे पाँव आता हैं
लीलता है हरापन
धीरे-धीरे
और हमें खबर तक नहीं होती
झरने नही लगते जब तक
एक-एक कर शाख से पते
और देखते-ही-देखते
एक दिन
पूरा पेड़ हो जाता है नंगा
मित्रो !
अब बहुत ज़रूरी हो गया है
हर कदम पर सावधान रहना
दुनिया के किसी भी कोने से चलकर
आने वाले हितैषी
सिर सहलाकर
दो मीठे बोलो के बहाने
हमारे घर में बनाकर अपना घर
कहीं लील न ले सारा हरापन !