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"हां वही सुख / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
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14:04, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
छिप नहीं सकता वह सुख
तृप्ति बन तिर-तिर
चेहरे पर घिर-घिर
आता हैं फिर-फिर
लुनाई लुटाता
अंगों में आलोक भरता
देह में देवत्व जगाता
वही
हां, वही सुख
जो हरा करता ।