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"सच बता………… / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>कितना अच्छा था वह दिन भले ही अनजाने में लिखे थे और अक्षर भी ढाई …)
 
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14:08, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

कितना अच्छा था वह दिन
भले ही अनजाने में लिखे थे
और अक्षर भी ढाई थे
लेकिन उनमें समाई दिखते थी
      पूरी दुनिया
 
और आज
कितना स-तर्क होकर
रच रहा हूं पोथे पर पोथे
झलकता तक नहीं जिसमें
मन का कोई कोना

सच बता यार !
ऐसे में क्या जरूरी है मेरा कवि होना ?