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"सच का संधान / कर्णसिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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चिड़िया की आंख सा
 
चिड़िया की आंख सा
 
सच का संधान  
 
सच का संधान  
 
द्रुज्बा
 
 
हमारी तुम्हारी दोस्ती के नाम
 
द्रुज्बा के इस घर पर
 
मेज की दराज में
 
छोड़े जा रहा हूँ ये डायरी
 
इसमें दर्ज़ हैं
 
सोफिया के आखिरी साल।
 
 
यह शहर जब
 
बन गया हो पैरिस
 
और तुम्हें
 
सोफिया की याद सताए
 
तब तुम यहाँ आना
 
पन्नों की धूल छुड़ाना
 
इनमें मिलेगा
 
तुम्हारे घर का नक्शा
 
ऐशिया की लिपि में खिंचा हुआ।
 
 
द्रुज्बा : सोफिया की एक नई बस्ती
 
 
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20:13, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


इस सच का सामना करके
अचानक अधेड़ हो गए हैं
मैं और मेरी पत्नी
केवल किस्सा नहीं था
पल में बालों का रंग बदल जाना
निमिष में
कली का फूल बन कर झड़ जाना

समुद्र की दहलीज लाँघते ही
व्यस्क हो गये बच्चे
कोरी कल्पना नहीं है
किसी का भविष्य में चले जाना
वर्तमान को दफ़्ना
इतर लोकों में खो जाना
शायद ही लौटकर आए
वह भोलापन
विश्वासों का हरा भरा आंगन
सीधी सरल रेखा में
विकसती बौद्धिकता
चिड़िया की आंख सा
सच का संधान