भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐश्वर्य का कुहासा / कर्णसिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्णसिंह चौहान |संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / क…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:14, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


बाहर दूर तक पसरी है
बर्फ़ की बेदाग काया
प्रकृति की माया
धरा पर छितरी है।

पूर्णिमा के चाँद सा खिला सूरज
उजली धूप
खिली है चारों ओर

बसंत फैला है
इस गरमाए घर में
उर्वर है कल्पना
अदभुत है सौंदर्य

इसे दूर से देखो
ऐश्वर्य के कुहासे में
यूरोप की परछाई
छलावा है केवल

यह जो सूरज वैभव में लटका है
मात्र हिम पिंड
आत्मा कंपा देगी
यह खिलखिलाती धूप
धर्म-कर्म से विचलित
आत्मरहित
पूरा वेश