भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिर मिलेंगे / कर्णसिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्णसिंह चौहान |संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:17, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
फिर मिलेंगे
यूं ही अचानक
फिर विदा होंगे
भरे हुए अनमने
जब पंख फड़फड़ाएं
तो आना
सूरज की सीध में
उड़ते जाना
नए नीड़ों की खोज में
उड़ती मिलेंगी सारस की कतारें
उन्हीं में मिल जाना
समुद्रों, पहाड़ों, बादलों के पार
घने जंगल में
आदिम बस्तियों के बीच
मैं वहीं कहीं हूँगा
धान निराता हुआ
बेहद आसान है
ढूंढ ही लोगे
फैली धरती पर
नन्हे दानों की उष्मा
दूर से बुलाती है