"नई हवा / कर्णसिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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सहमा है जंगल, पहाड़, औ’ काला सागर | सहमा है जंगल, पहाड़, औ’ काला सागर | ||
स्पार्टा के गाँव से ही कोई मंत्र लें । | स्पार्टा के गाँव से ही कोई मंत्र लें । | ||
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20:43, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
बहुत हो चुकी बातें नई हवाओं की
आओ चुपचाप इस नदी की धुन सुनें ।
बहुत शोर है, हंगामों से भर गया शहर
चलो यहाँ से किसी जंगल की राह लें ।
बहुत गर्म है काले सागर के पार की रेत
यहाँ बैठकर उसके लिए दुआ करें ।
कटने लगे है शीश यहाँ रहनुमाओं के
इस सभ्यता के शौक में कुछ और ख़ून दें ।
नुचे पंखों के सपनों से पट गई है यह सड़क
दम तोड़ती धुकधुकी की आवाज़ तो सुनें ।
यहाँ तो चोलियों के दाम बिक रही है रुह
हम भी इस बाज़ार में कुछ स्वप्न बेच लें ।
बर्फ़ीली हवाओं में कहीं दब गई जो आग
वहीं कहीं उसकी बग़ल में बसर करें ।
यारों ने दखल कर लिया यह स्वर्ग का कोना
इस नरक की आग से फौलाद बन निकलें ।
कितनी ख़ुश है ये भीड़ जला होली मार्क्स की
आओ प्रह्लाद के दर्शन वहाँ करें ।
सहमा है जंगल, पहाड़, औ’ काला सागर
स्पार्टा के गाँव से ही कोई मंत्र लें ।
स्पार्टकस : कहते हैं आदिविद्रोही दस स्पार्ट्कस का जन्म बल्गारिया के दक्षिणी नगर संदान्स्की के पास हुआ था।