भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धन का घन / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:51, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


धन का घन
रहार बाज घन्‍न-घन्‍न
घन-घन-घन
घनन-घनन
फटे जा रहे पर्दे भ्रांतिग्रस्‍त कानों के
छुटे चले जाते हैं छक्‍के प्राणों के
काट रही सर्वव्‍याप्‍त अंधकार
लपटों की धुआंभरी हू-ब-हू
गोली की गोलों की सन-सन-सन-सनन-सनन

रात भरी भीषण अंधे कोलाहल कलरव से
बूटों की ठक-ठक से
भागती पदचापों से
चीखें कम उम्र लड़कियों की
चीत्‍कार
उत्‍फुल्लित युवा वर्ग हाय-हाय
धांय-धांय-ढम-ढम-ढम
टीवी की टनन-टनन
धन का घन !
00