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− | + | आसमान लाल-लाल हो रहा | |
− | + | धरती पर घमासान हो रहा। | |
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− | + | नदी कहीं सोई है | |
+ | फसलों पर फिर किसान रो रहा। | ||
− | + | सुख की आशाओं पर | |
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+ | सिपाही लहूलुहान सो रहा। | ||
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13:14, 2 जुलाई 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : घमासान हो रहा रचनाकार: भारतेन्दु मिश्र |
आसमान लाल-लाल हो रहा धरती पर घमासान हो रहा। हरियाली खोई है नदी कहीं सोई है फसलों पर फिर किसान रो रहा। सुख की आशाओं पर खंडित सीमाओं पर सिपाही लहूलुहान सो रहा। चिनगी के बीज लिए विदेशी तमीज लिए परदेसी यहाँ धान बो रहा।