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"खरोंचें कभी पोंछी नहीं जाती / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर

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14:47, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

बच्चे स्लेट पर कुछ लिखकर
पानी से पोंछ देते हैं

एक-सा सुख है उनके लिए
लिख-लिखकर पोंछना
पोंछ-पोंछ कर लिखना

हम अपनी लिखी इबारतों को
पोंछ ही नहीं पाते
दरअसल हम लिखते कहां
           खरोंचते हैं
और खरोंचें कभी पोंछी नहीं जाती !