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"झूँपे ही नहीं / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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03:20, 3 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
यह काले-काले झूंपे
धोरी के आलस
या सूगलेपन का
परिणाम नहीं है
इनके भीतर
अकाल
महाकाल
त्रिकाल सरीखे सांप
बसते रहे हैं
और
भीतर बाहर से इन्हें
सदी दर सदी
डसते रहे हैं
इस लिए अब
यह झूंपे ही नहीं
साक्षात शिव भी हैं ।