भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आदमी की बिसात / तारादत्त निर्विरोध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
सच सभी का कहा नहीं होता, <br> | सच सभी का कहा नहीं होता, <br> | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 12: | ||
साँस लेने का मोल लेते हो, <br> | साँस लेने का मोल लेते हो, <br> | ||
इससे कोई नफा नहीं होता । <br><br> | इससे कोई नफा नहीं होता । <br><br> | ||
− | + | ज़िंदगी से जो | |
+ | कट के रह जाए, <br> | ||
वो कोई फलसफा नहीं होता । <br><br> | वो कोई फलसफा नहीं होता । <br><br> | ||
दर्द की बात फेर ही कीजे, <br> | दर्द की बात फेर ही कीजे, <br> |
09:31, 3 जुलाई 2010 का अवतरण
सच सभी का कहा नहीं होता,
हादसा हर दफा नहीं होता ।
जख्मेदिल फिर हरा नहीं होता,
आजकल वो खफा नहीं होता ।
साँस लेने का मोल लेते हो,
इससे कोई नफा नहीं होता ।
ज़िंदगी से जो
कट के रह जाए,
वो कोई फलसफा नहीं होता ।
दर्द की बात फेर ही कीजे,
दर्द दिल से जुदा नहीं होता ।
आदमी की बिसात क्या होगी,
आदमी तो खुदा नहीं होता ।
उम्र भर "निर्विरोध" रह के जिये,
वरना दुनिया में क्या नहीं होता ?