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"आदमी की बिसात / तारादत्त निर्विरोध" के अवतरणों में अंतर

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दर्द की बात फेर ही कीजे, <br>
 
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09:32, 3 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

सच सभी का कहा नहीं होता,
हादसा हर दफा नहीं होता ।

जख्मेदिल फिर हरा नहीं होता,
आजकल वो खफा नहीं होता ।

साँस लेने का मोल लेते हो,
इससे कोई नफा नहीं होता ।

ज़िंदगी से जो कट के रह जाए,
वो कोई फलसफा नहीं होता ।

दर्द की बात फेर ही कीजे,
दर्द दिल से जुदा नहीं होता ।

आदमी की बिसात क्या होगी,
आदमी तो खुदा नहीं होता ।

उम्र भर "निर्विरोध" रह के जिये,
वरना दुनिया में क्या नहीं होता ?