"साधो, खुद को साधो / दिनेश कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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17:14, 3 जुलाई 2010 का अवतरण
साधो ! खुद को साधो  
जीवन को तब खोल सकोगे 
जब अपने को बाँधो  
खुद को उस विचार से बाँधो सब बन्धन जो तोड़े  
भूख-रोग-बेकारी से लड़ती दुनिया से जोड़े  
बाँधो खुद को उस धारा से समय-धार जो मोड़े  
बन प्रवाह उद्दाम बहे जड़ता के परबत तोड़े  
आज बँधी है कविता इसको केवल वह खोलेगा  
भूखे-प्यासे सपनों की बोली में जो बोलेगा  
जा कर जो पकड़े लगाम साधे सूरज के घोड़े  
लड़े न्याय के लिए बेधड़क अपना सरबस छोड़े  
चले मुक्ति की राह अडिग चाहे कितने हों रोड़े  
गहे सत्य का पक्ष भले अपने साथी हों थोड़े  
अपना सब दे कर समाज को स्वयम् दिशायें ओढ़े  
कला-शिल्प का मोह त्याग लो पियो हलाहल-प्याला  
जीवन तब गह पाओगे जब भीतर जगे निराला  
वह बलिदानी टेक साध कर, कवि अपने को नाधो  
साधो ! खुद को साधो
 
	
	

