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"सुबह की बहर / दिनेश कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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17:16, 3 जुलाई 2010 का अवतरण
लाली सुबह की धीरे  
धीरे लहू में घुलती 
दो हाथ रौशनी के 
थामे हुए गगन को 
चुपचाप सो रहा था 
संसार का अतल जल 
तालाब था कँवल का 
और आग जल रही थी 
चालीस साल तप कर 
कुन्दन निखर उठा था 
जैसे कलस का पानी 
तुम पर अभी गिरा हो 
आहट पे मेरी तुमने 
तक-तक के बान मारे 
सारस का एक जोड़ा 
उतरा तभी जमीं पर 
जागा पवन का झोंका 
पानी की नींद टूटी 
वो दिन कि आज का दिन 
बैठा हूँ चुप तभी से
 
	
	

