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"मेरी नींद से तुम्हारे सपनों तक / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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19:59, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


मैंने देखा:
भीख माँगने वाले बच्चे
अपने ही स्वाँग पर
जब हँसी-ठट्ठा करते हैं
तो भीख देने वाला अपने को ठगा हुआ महसूस करता है
और दुत्कारने वाला अपनी क्रूरता पर पछताता है


आख़िर ये फैले हुए हाथ
मेरी नींद से निकलकर
तुम्हारे सपनों तक क्यों नहीं जाते
कहीं ऐसा न हो
कि आस-उम्मीद पर जीने वाले
ख़्वाब का दर बन्द कर लें