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+ | रक्तपात से नहीँ रुकेगी, गति पर मानवता की,नु हाँ | ||
+ | मानवता गिरि शिखर, गहन, दगह्वर सीखै पाशवत व्य अ छिपे | ||
+ | सीमा नहीँ मनिज के, गिर कर उठने की क्षमता की ! जल | ||
+ | ज्आज हील रही नीँव राष्ट्र की, | ||
+ | क्यक्ति का स्वार्थ ना टस से मस ! | ||
+ | राष्त्र के सिवा सभी स्वाधीन, | ||
+ | व्यक्ति स्वातँत्र अहम के वश! | ||
+ | राष्त्र की शक्ति सँपदा गौणॅ, मुख्य है, व्यक्ति व्यक्ति का धन! | ||
+ | नहीँ रग मोई अपनी जगह, सराष्त्र की दुखती है नस नस! | ||
+ | राष्त्र के रोम रोम मेँ आग, बीन " नीरो " की बजती है- | ||
+ | बुध्धिजीवी बन गया विदेह , राष्त्र की मिथिला जलती है ! | ||
+ | क्राँतिकारी बलिदानी व्यक्ति, बन बैठे हैँ कब से बुत ! | ||
+ | कह रहे हैँ दुनिया के लोग, कहूँ हैँ भारत के सुत ? | ||
+ | क्योँ ना हम स्वाभिमान से जीयेँ? चुनौती है, प्रत्येक दिवस ! | ||
+ | " जन क्राँति जगाने आई है, उठ हिँदू, उठ मुसलमान- | ||
+ | सँकीर्ण भेद त्याग, उठ, महादेश के महा प्राणॅ ! | ||
+ | क्या पूरा हिन्दुस्तान, न यह ? क्या पूरा पाकिस्तान नहीँ ? | ||
+ | मैँ हिँदू हूँ, तुम मुसलमान, पर क्या दोनोँ इन्सान नहीँ ? | ||
+ | " नहीँ आज आस्चर्य हुआ, क्योँ जीवन मुझे प्रवास ? | ||
+ | हँकार की गाँठ रही, निज पँसारी के हाथ ! | ||
+ | हो हभर्ष्ट न कुछ मिट्टी मेँ मिल, | ||
+ | केवल जाए अँधकार, | ||
+ | मेरे अणुण्उ मेँ दिव्य बीज, | ||
+ | जिसमेँ किसलय से छिपे भाव ! | ||
+ | पर, जो हीरक से भी कठोर ! | ||
+ | यदि होना ही है अँधकार, | ||
+ | गदो, प्राण मुझे वरदान,खुलेँ, | ||
+ | चिर आत्म बोध के बँद द्वार! | ||
+ | यदि करना ही विष पान मुझे, | ||
+ | कल्वाण रुप हूँ शिव समान, | ||
+ | दो प्राण यही वरदान मुझे! | ||
+ | तिनकोँ से बनती सृष्टि, सीमाओँ मेँ पलती रहती, | ||
+ | वह जिस विराट का अँश, उसी के झोँकोँ को , फिर फिर सहती | ||
+ | हैँ तिनकोँ मेँ तूफान चुपे, ज्योँ, शमी वृउक्ष मेँ छिपी अगन ! | ||
+ | स्व. पँडित नरेन्द्र शर्माकी कुछ काव्य पँक्तियाँ | ||
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नरेन्द्र शर्मा की रचनाएँ
जन्म | 1913 |
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निधन | |
उपनाम | |
जन्म स्थान | जहाँगीरपुर, जिला खुर्जा, उत्तर प्रदेश, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
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विविध | |
पंडित नरेन्द शर्मा ने हिन्दी फ़िल्मों के लिये बहुत से गीत लिखे। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। | |
जीवन परिचय | |
नरेन्द्र शर्मा / परिचय |
- ज्योति कलश छलके / नरेन्द्र शर्मा
- प्रयाग / नरेन्द्र शर्मा
- आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे / नरेन्द्र शर्मा
- तुम भी बोलो, क्या दूँ रानी / नरेन्द्र शर्मा
- तुम रत्न-दीप की रूप-शिखा / नरेन्द्र शर्मा
- हंस माला चल / नरेन्द्र शर्मा
- हर लिया क्यों शैशव नादान / नरेन्द्र शर्मा
- नींद उचट जाती है / नरेन्द्र शर्मा
- चलो हम दोनों चलें वहां / नरेन्द्र शर्मा
स्व. पँडित नरेन्द्र शर्माकी कुछ काव्य पँक्तियाँ 208.102.209.199 प्रेषक : लावण्या १७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)१७:५९, ३० नवम्बर २००७ (UTC)~~ रक्तपात से नहीँ रुकेगी, गति पर मानवता की,नु हाँ
मानवता गिरि शिखर, गहन, दगह्वर सीखै पाशवत व्य अ छिपे सीमा नहीँ मनिज के, गिर कर उठने की क्षमता की ! जल
ज्आज हील रही नीँव राष्ट्र की, क्यक्ति का स्वार्थ ना टस से मस ! राष्त्र के सिवा सभी स्वाधीन, व्यक्ति स्वातँत्र अहम के वश! राष्त्र की शक्ति सँपदा गौणॅ, मुख्य है, व्यक्ति व्यक्ति का धन! नहीँ रग मोई अपनी जगह, सराष्त्र की दुखती है नस नस! राष्त्र के रोम रोम मेँ आग, बीन " नीरो " की बजती है- बुध्धिजीवी बन गया विदेह , राष्त्र की मिथिला जलती है ! क्राँतिकारी बलिदानी व्यक्ति, बन बैठे हैँ कब से बुत ! कह रहे हैँ दुनिया के लोग, कहूँ हैँ भारत के सुत ? क्योँ ना हम स्वाभिमान से जीयेँ? चुनौती है, प्रत्येक दिवस ! " जन क्राँति जगाने आई है, उठ हिँदू, उठ मुसलमान- सँकीर्ण भेद त्याग, उठ, महादेश के महा प्राणॅ ! क्या पूरा हिन्दुस्तान, न यह ? क्या पूरा पाकिस्तान नहीँ ? मैँ हिँदू हूँ, तुम मुसलमान, पर क्या दोनोँ इन्सान नहीँ ? " नहीँ आज आस्चर्य हुआ, क्योँ जीवन मुझे प्रवास ? हँकार की गाँठ रही, निज पँसारी के हाथ ! हो हभर्ष्ट न कुछ मिट्टी मेँ मिल, केवल जाए अँधकार, मेरे अणुण्उ मेँ दिव्य बीज, जिसमेँ किसलय से छिपे भाव ! पर, जो हीरक से भी कठोर ! यदि होना ही है अँधकार, गदो, प्राण मुझे वरदान,खुलेँ, चिर आत्म बोध के बँद द्वार! यदि करना ही विष पान मुझे, कल्वाण रुप हूँ शिव समान, दो प्राण यही वरदान मुझे! तिनकोँ से बनती सृष्टि, सीमाओँ मेँ पलती रहती, वह जिस विराट का अँश, उसी के झोँकोँ को , फिर फिर सहती हैँ तिनकोँ मेँ तूफान चुपे, ज्योँ, शमी वृउक्ष मेँ छिपी अगन ! स्व. पँडित नरेन्द्र शर्माकी कुछ काव्य पँक्तियाँ
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