भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रेत की पीड़ा / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>हां ज़रूर था यहां सागर मगर रेत ने तो नहीं पीया सारा का सारा पानी!…)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:23, 7 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

हां
ज़रूर था यहां सागर
मगर
रेत ने तो नहीं पीया
सारा का सारा पानी!
सूरज
जो अटल चमकता रहा
बहुत प्यासा था
आखिर
अपनी सदियों पुरानी
प्यास बुझा गया
और
छोड़ गया
एक खाली बर्तन सा
यह मरुथल!