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"माथे पे बिंदिया चमक रही / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
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23:58, 2 मई 2007 का अवतरण
रचनाकार: भावना कुँअर
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माथे पे बिंदिया चमक रही
हाथों में मेंहदी महक रही।
शर्माते से इन गालों पर
सूरज सी लाली दमक रही।
खन-खन से करते कॅगन की
आवाज़ मधुर सी चहक रही।
है नये सफर की तैयारी
पैरों में पायल छनक रही।
Categories: कविताएँ | भावना कुँअर