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"महानगर में सवेरा / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | गाढ़े मवाद की तरह | ||
+ | फैलने लगती हैं-- | ||
+ | सड़कों, राजभवनों | ||
+ | और झुराए मधुछत्तों जैसे | ||
+ | इमारतों तक | ||
+ | और बहने लगती हैं | ||
+ | रोगाणुओं-कीटाणुओं से दबी | ||
+ | और मृत्यु-भय से हदसी |
12:58, 9 जुलाई 2010 का अवतरण
महानगर में सवेरा
अभी निशा-भ्रमित धुओं पर
दागे जा रहे होते हैं
तेजाबी ओस
कि चिमनियों-कार्ब्यूरेटरों से
कूच कर चली
धुओं की सशस्त्र सेनाएं
गोरिल्ला रणनीति से
शामिल हो जाती हैं
सृष्टि के विरुद्ध
एक परिणामी युद्ध में
तभी, आहत आसमान की
बांहों में सिसकते
ज्वारातंकित पूर्वी क्षितिज से
उग आता है
टींसते फोड़े जैसा सूरज
जिसकी किरणें
गाढ़े मवाद की तरह
फैलने लगती हैं--
सड़कों, राजभवनों
और झुराए मधुछत्तों जैसे
इमारतों तक
और बहने लगती हैं
रोगाणुओं-कीटाणुओं से दबी
और मृत्यु-भय से हदसी