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"एक माँ की कविताएँ-2 / नरेन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर
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लगभग संशय के स्वरों में | लगभग संशय के स्वरों में |
02:51, 10 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
लगभग संशय के स्वरों में
मुझे
ख़ामोश करती हुई वह बोली
'वह ज़रूर हमारी बातें सुन रहा है
उसके मन में उतरती है एक-एक बात
वह बहुत चालाक है'
मैंने उसे आश्वस्त किया
उससे कुछ मत छिपाओ
वह सब जानता है वहाँ
होगा प्रविष्ट एक दिन
मेरी तरह यह भी
औरत की दुनिया में
पाग़ल होगा
धूप और संगीत के लिए
रोज़ एक नई दुनिया
बनाता हुआ